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शे'र
ये राज़ की बातें हैं इस को समझे तो कोई क्यूँकर समझेइंसान है पुतला हैरत का मजबूर भी है मुख़्तार भी है
अहक़र बिहारी
शे'र
इ’श्क़ की बर्बादियों को राएगाँ समझा था मैंबस्तियाँ निकलीं जिन्हें वीरानियाँ समझा था मैं