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शे'र
सामने मेरे ही वो जाते हैं बज़्म-ए-ग़ैर मेंअल-मदद ऐ ज़ब्त मुझ को कब तक उस का ग़म रहे
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामनेनाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो