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शे'र
जानता हूँ मैं कि मुझ से हो गया है कुछ गुनाहदिलरुबा या बे-दिलों से दिल तुम्हारा फिर गया
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
कह दिया फ़िरऔ’न ने भी मैं ख़ुदा कर के ख़ुदीहो के बे-ख़ुद जब कहे इंकार की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
जो मरने से मूए पहले उन्हें क्या ख़ौफ़ दोज़ख़ कादिल अपना नार-ए-हिजरत से जला ले जिस का जी चाहे
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
ख़ूब-रू ख़ुद आ मिले जब फिर किसी का ख़ौफ़ क्याये वो जादू है जिसे तस्ख़ीर की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
सिवा क़िस्मत के दुनिया में नहीं कुछ मुतलक़न मिलतावगर्ना ज़ोर कर के आज़मा ले जिस का जी चाहे
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
असीर-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म बनाए पहले आशिक़ कोनिकाले फिर वो पेच-ओ-ख़म कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
बे-गुमाँ मिल जाएगा जो है लिखा क़िस्मत के बीचसाबिर-ओ-शाकिर को कुछ जागीर की हाजत नहीं