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शे'र
अब तो मैं राहरव-मुल्क-ए-अ’दम होता हूँतिरा हर हाल में हाफ़िज़ है ख़ुदा मेरे बा’द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
शे'र
अगर हम से ख़फ़ा होना है तो हो जाइए हज़रतहमारे बा’द फिर अंदाज़-ए-यज़्दाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
वहाँ तो हज़रत-ए-ज़ाहिद तुम्हें अच्छों से नफ़रत थीयहाँ जन्नत में अब किस मुँह से तुम लेने को हूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
शे'र
मिला क्या हज़रत-ए-आदम को फल जन्नत से आने कान क्यूँ उस ग़म से सीन: चाक हो गंदुम के दाने का
शाह नसीर
शे'र
अपने हाथों मेहंदी लगाई माँग भी मैं ने देखो सजाईआए पिया घर रिम-झिम बरसे जाओ बता दो सावन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
आकाश की जगमग रातों में जब चाँद सितारे मिलते हैंदिल दे दे सनम को तू भी ये क़ुदरत के इशारे मिलते हैं
अब्दुल हादी काविश
शे'र
तू लाख करे इंकार मगर बातों में तिरी कौन आता हैईमान मिरा ये मेरा यक़ीं तू और नहीं मैं और नहीं
अब्दुल हादी काविश
शे'र
जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करेइ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है