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शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
मोहब्बत में सरापा आरज़ू-दर-आरज़ू मैं हूँतमन्ना दिल मिरा है और मिरे दिल की तमन्ना तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँवो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर क्यूँ मुझ को न रास आएँ मोहब्बत मेंजफ़ा-ओ-जौर के पर्दे में पिन्हाँ मेहरबानी है