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शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
कश्ती है सुकूँ की मौजों में इतना ही सहारा काफ़ी हैमेरे लिए तो ऐ जान-ए-जहाँ बस नाम तुमहारा काफ़ी है
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
शे'र
ख़ुदा शाहिद है इस शम्‘अ-ए-फ़रौज़ाँ की ज़िया तुम होमैं हरगिज़ ये नहीं कहता तुमहें मेरे ख़ुदा तुम हो