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वह्म है शक है गुमाँ है बाल से बारीक हैइस से बेहतर और मज़मून-ए-कमर मिलता नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
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जिसे कहते हैं मौत इक बे-ख़ुदी की नींद है 'शाएक़'परेशानी है जिस का नाम वो है ज़िंदगी अपनी
पंडित शाएक़ वारसी
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हसरत-ओ-यास-ओ-आरज़ू शौक़ का इक़्तिदा करेंकुश्ता-ए-ग़म की लाश पर धूम से हो नमाज़-ए-इ’श्क़
बेदम शाह वारसी
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चलता हूँ राह-ए-इ’श्क़ में आँखों से मिस्ल-ए-अश्कफूटें कहीं ये आबले सरसब्ज़ होवें ख़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
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इ’श्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इश्क़आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इ’श्क़
बेदम शाह वारसी
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बेदम शाह वारसी
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कर क़त्ल शौक़ से मैं तसद्दुक़ हुआ हुआसरकार नहीं है फ़िक्र जो हुआ इंतिज़ार-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आशिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल सेअजल तो है ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से
शाह अकबर दानापूरी
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सदिक़ देहलवी
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मक़्दूर क्या जो कह सुकूँ कुछ रम्ज़-ए-इ’श्क़ कोजूँ शम्अ' हूँ अगरचे सरापा ज़बान-ए-इ’श्क़