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फ़ना बुलंदशहरी
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शम्अ' के जल्वे भी या-रब क्या ख़्वाब था जलने वालों कासुब्ह जो देखा महफ़िल में परवाना ही परवाना था
बेदार शाह वारसी
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ख़ुदा शाहिद है इस शम्‘अ-ए-फ़रौज़ाँ की ज़िया तुम होमैं हरगिज़ ये नहीं कहता तुमहें मेरे ख़ुदा तुम हो
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
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जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जायेफ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:
इब्राहीम आजिज़
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शोमी-ए-क़िस्मत कहें या ख़सलत-ए-इंसाँ इसेआ के क़ाबिज़ बज़्म-ए-हस्ती पर ये मेहमाँ हो गया
गुरबचन सिंह दयाल
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इजाज़त हो तो हम इस शम्अ'-ए-महफ़िल को बुझा डालेंतुम्हारे सामने ये रौशनी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
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रहज़न-ए-ईमान तू जल्वा दिखा जाए अगरबुत पुजें मंदिर में मस्जिद में ख़ुदा की याद हो