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शे'र
जिलाया मार कर क़ातिल ने मैं इस क़त्ल के क़ुर्बांहुआ दाख़िल वो ख़ुद मुझ में मैं ऐसे दख़्ल के क़ुर्बां
मरदान सफ़ी
शे'र
कर क़त्ल शौक़ से मैं तसद्दुक़ हुआ हुआसरकार नहीं है फ़िक्र जो हुआ इंतिज़ार-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
जो अ’ज़्म-ए-क़त्ल है आँखों पे पट्टी बाँध ली क़ातिलमबादा तुझ को रहम आ जाए मेरी ना-तवानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
मैं न मानूँगा कि दी अग़्यार ने तर्ग़ीब-ए-क़त्लदुश्मनों से दोस्ती का हक़ अदा क्यूँकर हुआ