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शे'र
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक हैख़ुदा जाने हमारे इ’श्क़ की दुनिया कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
जब तक एक हसीं मकीं था दिल में हर-सू फूल खिले थेवो उजड़ा तो गुलशन उजड़ा और हुआ आबाद नहीं है
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
आग लगी वो इशक की सर से मैं पाँव तक जलाफ़र्त-ए-ख़ुशी से दिल मिरा कहने लगा जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
शे'र
जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तकचराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है