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शे'र
न क़ुर्ब-ए-गुल की ताब थी न हिज्र-ए-गुल में चैन थाचमन चमन फिरे हम अपना आशियाँ लिए हुए
बेदम शाह वारसी
शे'र
जब इ’श्क़ आ’शिक़ बेबाक करे तब पावे अपने मतलब कोतन मन को मार के ख़ाक करे तब पावे अपने मतलब को
कवि दिलदार
शे'र
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्तीफ़ना का क्या मज़ा जब तक ख़ुदा मालूम होता है