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शे'र
कुछ ऐसा दर्द शोर-ए-क़ल्ब-ए-बुलबुल से निकल आयाकि वो ख़ुद रंग बन कर चेहरः-ए-गुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
शे'र
बढ़ के तूफ़ाँ में सहारा मौज-ए-तूफ़ाँ क्यूँ न देमेरी कश्ती का ख़ुदा है ना-ख़ुदा कोई नहीं
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
कुछ इस आ'लम में वो बे-पर्दा निकले सैर-ए-गुलशन कोकि नसरीं अपनी ख़ुश्बू रंग भोली नस्तरन अपना
हसरत मोहानी
शे'र
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ’ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
ऐ जान-ए-मन जानान-ए-मन हम दर्द-ओ-हम दरमान-ए-मनदीन-ए-मन-ओ-ईमान-ए-मन अम्न-ओ-अमान-ए-उम्मताँ
अहमद रज़ा ख़ान
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशनक्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है