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शे'र
साग़र शराब-ए-इ'श्क़ का पी ही लिया जो हो सो होसर अब कटे या घर लुटे फ़िक्र ही क्या जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
शे'र
मियान-ए-तिश्नगी प्यासों ने ऐसी लज़्ज़तें लूटींकि आब-ए-तेग़-ए-क़ातिल बे-मज़ा मा’लूम होता है
मुज़तर ख़ैराबादी
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशनक्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
अभी ऐ जोश-ए-गिर्या तू ने ये सोचा नहीं शायदमोहब्बत का चमन मिन्नत-कश-ए-शबनम नहीं होता