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शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-एज़ारअश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-ए'ज़ारअश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ