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शे'र
जिसे कहते हैं मौत इक बे-ख़ुदी की नींद है 'शाएक़'परेशानी है जिस का नाम वो है ज़िंदगी अपनी
पंडित शाएक़ वारसी
शे'र
कर दिया है बे-ख़ुदी ने आज इस क़ाबिल मुझेअपने पहलू में लिए लेती है ख़ुद मंज़िल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
शे'र
पस-ए-मुर्दन इरादा दिल में था जो कू-ए-क़ातिल कालहद में ख़ुश हुआ मैं नाम सुनकर पहली मंज़िल का
ग़ाफ़िल लखनवी
शे'र
तुम को कहते हैं कि आशिक़ की फ़ुग़ाँ सुनते होये तो कहने ही की बातें हैं कहाँ सुनते हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
तू उसी की आँख का नूर है तू उसी के दिल का सुरूर हैकि जिसे बुलंद नज़र मिली कि जिसे शुऊ'र-ए-विला मिला
कामिल शत्तारी
शे'र
कि ख़िरद की फ़ित्नागरी वही लुटे होश छा गई बे-ख़ुदीवो निगाह-ए-मस्त जहाँ उठी मिरा जाम-ए-ज़िंदगी भर गया
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
बहादुर शाह ज़फ़र
शे'र
वफ़ादारी की सूरत में जफ़ा-कारी का नक़्शा तूये नैरंग-ए-मोहब्बत है कि ऐसा मैं हूँ वैसा तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच