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बेदम शाह वारसी
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ख़ुदा को याद कर क्यों मुल्तजी है कीमिया-गर सेकि सोना ख़ाक से होता है पैदा ला’ल पत्थर से
बह्र लखनवी
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ख़ुदा को याद कर क्यों मुल्तजी है कीमिया-गर सेकि सोना ख़ाक से होता है पैदा ला’ल पत्थर से
बह्र लखनवी
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याद में उस क़द-ओ-रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँजा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो
मीर मोहम्मद बेदार
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न तुम आए न अपनी याद को भेजा मिरे दिल मेंये वो घर है कि जिस को तुम ने रखा बे-मकीं बरसों
मुज़्तर ख़ैराबादी
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किसी का साथ सोना याद आता है तो रोता हूँमिरे अश्कों की शिद्दत से सदा गुल-तकिया गलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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वफ़ाएँ याद करके वो बहा जाते हैं रोज़ आँसूरहेगा हश्र तक सरसब्ज़ सब्ज़ः मेरी तुर्बत का
अकबर वारसी मेरठी
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ख़ुदा का शुक्र है प्यासे को दरिया याद करता हैमुसाफ़िर ने फ़राहम कर लिया है कूच का सामाँ
नाज़ाँ शोलापुरी
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उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
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इ'श्क़-ए-बुत का'बा-ए-दिल में है ख़ुदाया जब सेतेरा घर भी मुझे बुत-ख़ाना नज़र आता है