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शे'र
सताता है मुझे सय्याद ज़ालिम इस लिए शायदकि रौनक़ उस के गुलशन की मिरे शग़्ल-ए-फ़ुग़ाँ तक है
वली वारसी
शे'र
इन्हें आँसू समझ कर यूँ न मिट्टी में मिला ज़ालिमपयाम-ए-दर्द-ओ-दिल है और आँखों की ज़बानी है
जिगर मुरादाबादी
शे'र
वफ़ा की हो किसी को तुझ से क्या उम्मीद ओ ज़ालिमकि इक आलम है कुश्त: तेरी तर्ज़-ए-बेवफ़ाई का
इब्राहीम आजिज़
शे'र
चला आता है जो सय्याद-ए-ज़ालिम दाम-ए-गेसू लेकि शायद आहू-ए-दिल कूँ करेगा ओ शिकार आख़िर
तुराब अली दकनी
शे'र
और भी उन ने 'बयाँ' ज़ुल्म कुछ अफ़्ज़ूद कियाकिया उस शोख़ से तीं इश्क़ का इज़हार अबस