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शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुनाअभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर
जिगर मुरादाबादी
शे'र
शकील बदायूँनी
शे'र
ख़ुदा-या ख़ैर करना नब्ज़ बीमार-ए-मोहब्बत कीकई दिन से बहुत बरहम मिज़ाज-ए-ना-तवानी है
जिगर मुरादाबादी
शे'र
बहुत ही ख़ैर गुज़री होते होते रह गई उस सेजिसे में ग़ैर समझा हूँ वो उन का पासबाँ होगा
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
यही ख़ैर है कहीं शर न हो कोई बे-गुनाह इधर न होवो चले हैं करते हुए नज़र कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
यारब जो ख़ार-ए-ग़म हैं जला दे उन्हीं के तईंजो ग़ुंचा-ए-तरब हैं खिला दे उन्हों के तईं