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शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क्यों गुल-ए-आरिज़ पे तुमने ज़ुल्फ़ बिखराई नहींचश्मा-ए-ख़ुर्शीद में क्यों साँप लहराया नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
दिल फंसा कर ज़ुल्फ़ में ख़ुद है पशेमानी मुझेदह्र में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कहती है ज़िंदानी मुझे
सादिक़ लखनवी
शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
शे'र
गर मिले इक बार मुझ को वो परी-वश कज-अदाउस को ज़ाहिर कर दिखाऊँ दिल का मतलब दिल की बात
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
जहाँ में ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ को क्या छोड़ देते हैंकि तुम ने छोड़ रखा मुझ असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
दीवानः शुद ज़ू इ’श्क़ हम नागह बर-आवर्द आतिशीशुद रख़्त-ए-शहरी सोख़त: ख़ाशाक-ए-ईं वीरानः हम
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
मिलें भी वो तो क्यूँकर आरज़ू बर आएगी दिल कीन होगा ख़ुद ख़याल उन को न होगी इल्तिजा मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
मिलें भी वो तो क्यूँकर आरज़ू बर आएगी दिल कीन होगा ख़ुद ख़याल उन को न होगी इल्तिजा मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
नामा-बर ख़त दे के उस को लफ़्ज़ कुछ मत बोलियोदम-ब-ख़ुद रहियो तेरी तक़रीर की हाजत नहीं