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शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क्यों गुल-ए-आरिज़ पे तुमने ज़ुल्फ़ बिखराई नहींचश्मा-ए-ख़ुर्शीद में क्यों साँप लहराया नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
दिल फंसा कर ज़ुल्फ़ में ख़ुद है पशेमानी मुझेदह्र में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कहती है ज़िंदानी मुझे
सादिक़ लखनवी
शे'र
जहाँ में ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ को क्या छोड़ देते हैंकि तुम ने छोड़ रखा मुझ असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था न था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़यालसो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
साहिल तह से दूर सिवा तह साहिल से दूर सिवाक़िस्मत क़ा'र-ए-समुंदर में कश्ती आज डुबोती है
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआ'ज़-अल्लाहकि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
ख़ुशी से दूर हूँ ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-इ’शरत हूँसरापा दर्द हूँ वाबस्ता-ए-ज़ंजीर-क़िस्मत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
शे'र
ख़ुशी से दूर हूँ ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-इ’शरत हूँसरापा दर्द हूँ वाबस्ता-ए-ज़ंजीर-क़िस्मत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
जिस दिन से बू-ए-ज़ुल्फ़ ले आई है अपने साथइस गुलशन-ए-जहाँ में हुआ हूँ सबा-परस्त
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ’ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
दूर हो गर शाम्मा से तेरे ग़फ़लत का ज़ुकामतू उसी की बू को पावे हर गुल-ओ-सौसन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सदा ही मेरी क़िस्मत जूँ सदा-ए-हल्क़ा-ए-दर हैअगर मैं घर में जाता हूँ तो वो बाहर निकलता है