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कलाम
रूठे को मना ने को क़िस्मत के बनाने कोरिंदों को कहीं पर भी आना है न जाना है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
हो के बे-ख़ुद नश्शा-ए-मय से ज़मीं पर गिर पड़ेबस यही रिंदों का साक़ी सज्दा-ए-शुक्राना है
सईद लखनवी
कलाम
उस के रिंदों के यहाँ सब से निराले तौर हैंउन का तो सोम-ओ-सलात-ओ-इत्तिक़ा कुछ और है
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
ता-'उम्र उड़ाया पैमाना फिर न मिला वो जानानारिंदों में यही है शोर मचा मिलता है पिया के दर पे ख़ुदा