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कलाम
न छेड़ो हम-नशीनो शाम-ए-ग़म 'पुरनम' को रोने दोमुसीबत में किसी की दिल-लगी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
शीशा-ए-दिल उस बुत ने तोड़ा 'पुरनम' उस में हैरत क्याटूट ही जाएगा जो शीशा पत्थर से टकराएगा