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कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
अर्ज़-ए-तमन्ना कर के गँवाया हम ने भरम ख़ुद्दारी काहो गई गो तकमील-ए-तमन्ना दिल को नदामत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
चलें गो कि सैकड़ों आँधियाँ जलें गरचे लाख घर ऐ फ़लकभड़क उठ्ठे 'आतिश'-ए-तूर फिर कोई इस तरह की दवा नहीं
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
कलाम
भला क्या फ़ायदा खोलूं जो मैं शिकवों के दफ़्तर कोयूं ही हँसने दे उस को गो-मगो ऐ यार जाने दे
रिंद लखनवी
कलाम
क़िस्सा-गो ये तो बता कैसे सुनाया उन कोकिस का अफ़्साना मिलाया मेरे अफ़्साने में