परिणाम "अप्पू-घर"
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लेके दिल में मोहब्बत की पाकीज़गी घर से निकले थे दैर-ओ-हरम के लिएहम-जुनूँ में ना जाने कहाँ आ गए माह-ओ-अंजुम ने बोसे क़दम के लिए
घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैरजानेगा अब भी तू न मिरा घर कहे बग़ैर
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशानः तिरा और जल्वः-ख़ानः तिरामय-कद: तेरा है का'बः तिरा बुत-ख़ाना तिरा सब है जानाना तिरा
जंगल दे विच शेर मरेला बाज़ पवे विच घर दे हूइश्क़ जिन्हाँ सर्राफ़ न कोई खोट न छड्डे ज़र दे हू
ग़ैर के घर जाते हुए आज सनम देख लियातू न मानेगा मगर तेरी क़सम देख लिया
तुम अगर यूँही नज़रें मिलाते रहे मय-कशी मेरे घर से कहाँ जाएगीऔर ये सिलसिला मुस्तक़िल हो तो फिर बे-ख़ुदी मेरे घर से कहाँ जाएगी
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