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कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
कलाम
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
कलाम
क़मर जलालवी
कलाम
तिरी ज़ात की नहीं इब्तिदा तिरी हस्ती की नहीं इंतिहातिरे भेद का है यही पता तो जुदा नहीं में जुदा नहीं
ग़ौसी शाह
कलाम
इ'श्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतिहा भी तुमरहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम ख़ुदा भी तुम
बेदम शाह वारसी
कलाम
इब्तिदा में हज़रत-ए-इंसान क्या था क्या हुआग़ौर कर ख़ुद को ज़रा पहचान क्या था क्या हुआ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
परस्तार-ए-मोहब्बत को ख़याल-ए-मा-सिवा क्यूँ होख़ुशी भी तेरे मिलने की शरीक मुद्दआ' क्यूँ हो
माहिरुल क़ादरी
कलाम
इलाही क्या करें ज़ब्त-ए-मोहब्बत हम तो मरते हैंये नाले तीर बन-बन कर कलेजे में उतरते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
कहाँ हो तुम चले आओ मोहब्बत का तक़ाज़ा हैग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
दास्ताँ इ'श्क़-ओ-मोहब्बत की किताबों में नहींजो नश्शा आँख में तेरी है शराबों में नहीं