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कलाम
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
कलाम
तिरी ज़ात की नहीं इब्तिदा तिरी हस्ती की नहीं इंतिहातिरे भेद का है यही पता तो जुदा नहीं में जुदा नहीं
ग़ौसी शाह
कलाम
इ'श्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतिहा भी तुमरहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम ख़ुदा भी तुम
बेदम शाह वारसी
कलाम
इब्तिदा में हज़रत-ए-इंसान क्या था क्या हुआग़ौर कर ख़ुद को ज़रा पहचान क्या था क्या हुआ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
ये असीर-ए-रंज-ओ-राहत में असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानानाभला क्या समझ सकेगा मुझे ना समझ ज़माना
अब्दुल हादी काविश
कलाम
मैं मसर्रत में ख़ुशी में हूँ न रंज-ओ-ग़म में हूँरू-ए-जानाँ सामने है मैं अजब आ'लम में हूँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है