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हमारे ख़ाके उड़ा-उड़ा कर वो अपना नक़्शा जमा रहे हैंमजाल किस की जो उन से पूछे हुज़ूर ये क्या बना रहे हैं
दिल उड़ा ग़ैर का आ'शिक़ का जिगर छोड़ दियातुम ने ऐ जान-ए-जहाँ तीर किधर छोड़ दिया
आन पड़ी हूँ गोर किनारेख़ाक उड़ा कर बन बन की
मगर ग़ुबार हुए पर हवा उड़ा ले जाएवगरना ताब ओ तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं
बीती जाए 'उम्रिया हमारी रेबहार आई हवा भाई उड़ा गुर्दा रुख़-ए-गुल से
मेरी आहों ने उड़ा डाले क़फ़स के टुकड़ेकिस लिए अब मिरे पर खोलने सय्याद आया
नफ़स-ए-गर्म की तासीर ने मय-ए-साग़र सेशो'ला-ए-लफ़्ज़ के मानिंद उड़ा दी साक़ी
उड़ा पतंग मोहब्बत का चर्ख़ से भी दूरख़िरद की दौड़ को अब छोड़ दीजिए तो सही
उड़ा पारा जला इस्पंद दब कर रह गई बिजलीहमीं साबित-क़दम ठहरे तुम्हारे बे-क़रारों में
निगह-ए-नाज़ से ग़म्ज़े ने कहा तड़पा करयूँ उड़ा देते हैं उस्ताद निशाना दिल का
छूती नहीं मुझे पर-ए-जिब्रील की हवाये किन बुलंदियों पे उड़ा जा रहा हूँ मैं
कोई राँझा जो कभी खोज में निकले तेरीतुम उसे झंग के बेले में उड़ा देते हो
छूती नहीं है मुझे पर-ए-जिब्रील की हवाये किन बुलंदियों पे उड़ा जा रहा हूँ मैं
हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे
इक ज़रा वहशत दिल बढ़ के ख़बर तो लेनाख़ाक किया नज्द में मज्नूँ ने उड़ा रखी है
तीर-ए-निगह जब उस का चला है सू-ए-फ़लकचिल्ला उड़ा दिया है कमान-ए-हिलाल का
अब आंधियों के झोंके उस को उड़ा रहे हैंफूलों में तुल रहा था कल तक जो आशियाना
शाला कोई न थीवे मुसाफ़र कक्ख जिन्हाँ तों भारे हूताड़ी मार उड़ा न सानूँ आपे उड्डणहारे हू
इक दिन आएगी ख़िज़ाँ दोनों की कैसे ये 'अमीर'चार दिन बाग़ में बे-पर की उड़ा ले बुलबुल
वो ज़ार-ओ-ना-तवा है बीमार-ए-ग़म इलाहीहर साँस चुटकियों में तन को उड़ा रहा है
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