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कलाम
ख़ाम की जाणन सार फ़क़र दी महरम नहीं दिल दे हूआब मिट्टी थीं पैदा होए खामी भांडे गिल्ल दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह-ओ-दमनमुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
कलाम
क़मर जलालवी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देनामगर कुछ सोच कर रहम आ गया जाओ दु'आ देना