परिणाम "क़ज़ा"
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देखे जो दम-ए-ज़ब्ह अदाएँ तिरी क़ातिलहोजाए क़ज़ा को मिरी अरमान क़ज़ा का
है चीज़ एक अदा-ओ-क़ज़ा इस क़दर है फ़र्क़सीधी नज़र अदा हुई तिरछी क़ज़ा हुई
हिना दस्त-ए-दिलबर लगाई हुई हैकिसी की क़ज़ा आज आई हुई है
दफ़्न कर के क़ब्र में बोली क़ज़ाअब यहाँ तुम सोते रहना चंद रोज़
आँखें झुक कर उठी तो क़ज़ा बन गईंआँखें जिन में है आसमान-ओ-ज़मीं
किस का दिल ज़ुल्फ़ से भागा कि 'असद'दस्त-ए-शाना ब-क़ज़ा बाँधते हैं
वो बार-बार निगाहें इधर जो करते हैंदिखाते हैं मुझे गलियाँ क़ज़ा के आने की
ज़रा मुड़ के देखो तो लाशा किसी काकि सदक़े किसी के क़ज़ा हो रही है
ब-ज़ाहिर कहीं ग़ुंचा-ए-दिल से मिला थाकल उस का गरेबाँ-ओ-दस्त-ए-क़ज़ा था
मौत का वक़्त किसी तर्ह टले ना-मुम्किनआही जाती है जब आने को क़ज़ा होती है
कम-ज़र्फ़ी-ए-हयात से तंग आ गया था मैंअच्छा हुआ क़ज़ा से मुलाक़ात हो गई
करता है एक वार में चौरंग सैकड़ोंक़ातिल को भी ख़ुदा ने दिए हैं क़ज़ा के हाथ
क़ज़ा भी सदक़े होती है निगाह-ए-तेज़ क़ातिल केशहादत सर कटाने के लिए तय्यार कैसी है
हसरत-ए-दीद-ए-नबी में जो मरा हूँ 'ग़ौसी'सदक़े होती है क़ज़ा देख के लाशा मेरा
क़ज़ा भी सदक़े होती है निगाह-ए-तीर क़ातिल के‘शहादत’ सर कटाने के लिए तय्यार कैसी है
छोड़ा मह-ए-नख़शब की तरह दस्त-ए-क़ज़ा नेख़ुर्शीद हुनूज़ उस के बराबर न हुआ था
दर कू-ए-नेक-नामी मा रा गुज़र न दादंदगर तू ने पसंदी तग़ईर कुन क़ज़ा रा
तमाम 'उम्र क़ज़ा हो तो हो नमाज़ मगरनज़र ख़ता न हो जब यार रू-ब-रू आए
मैं तमाशे को जहाँ के जो 'अदम से पहुँचापेशवा पैक-ए-क़ज़ा था मुझे मा'लूम न था
आशिक़ों को फिर क़ज़ा आई क़यामत हो गईफिर समंद-ए-नाज़ को उस तुर्क ने जौलाँ किया
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