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कलाम
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह-ओ-दमनमुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
कलाम
ज़ुहूर-ए-नूर-ए-रहमत है तमाम अतराफ़ का'बा मेंक़लम क्या ख़ाक उठाएगा कोई औसाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
उस के चेहरे पे ख़ुदा जाने ये कैसा नूर थावर्ना ये दीवानगी कब इ'श्क़ का दस्तूर था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
शौक़-ए-नज़ारा है जब से उस रुख़-ए-पुर-नूर काहै मिरा मुर्ग़-ए-नज़र परवाना शम्अ'-ए-तूर का
इब्राहीम ज़ौक़
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है