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कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी है
किसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
कलाम
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
कलाम
तुम ही तो वज्ह-ए-ज़िंदगी तुम ही तो मक़्सद-ए-हयात
जान-ए-जहान-ए-आरज़ू रूह-ए-रवान-ए-काएनात
कामिल शत्तारी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं
मस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है
तर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता है
ज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है