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कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
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फ़स्ल-ए-गुल में रंग मस्ती का जमाना चाहिएउठ के मस्जिद से सू-ए-मय-ख़ाना जाना चाहिए
इम्तियाज़ हुसैन वाक़िफ़
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
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पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
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सहबा अकबराबादी
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माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना