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कलाम
ज़ुहूर-ए-नूर-ए-रहमत है तमाम अतराफ़ का'बा मेंक़लम क्या ख़ाक उठाएगा कोई औसाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
शौक़-ए-नज़ारा है जब से उस रुख़-ए-पुर-नूर काहै मिरा मुर्ग़-ए-नज़र परवाना शम्अ'-ए-तूर का
इब्राहीम ज़ौक़
कलाम
मिरी ज़ीस्त पुर-मसर्रत कभी थी न है न होगीकोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
उस के चेहरे पे ख़ुदा जाने ये कैसा नूर थावर्ना ये दीवानगी कब इ'श्क़ का दस्तूर था