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कलाम
जिसे दीद तेरी नसीब हो वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद हैकि शब-ए-बरात है रात उसे दिन उस के वास्ते 'ईद है
अश्क रामपुरी
कलाम
बनायी मुझ बेनवा की बिगड़ी नसीब मेरा जगा दियातेरे करम के निसार तूने मुझे भी जीना सिखा दिया