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कलाम
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाएमंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलमतिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
तुम को गर ख़ुद से जुदा समझूँ तो मैं काफ़िर हूँमैं अगर ग़ैर-ए-ख़ुदा समझूँ तो मैं काफ़िर हूँ
अज्ञात
कलाम
तुम्हारे 'इश्क़ में गर जान के देने से मैं अड़ताकोई दिन जी के आख़िर मौत से मरना ही फिर पड़ता
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
'अजब क्या गर मुझे 'आलम ब-ईं वुस'अत भी ज़िंदाँ थामैं वहशी भी तो वो हूँ ला-मकाँ जिस का बयाबाँ था