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कलाम
मैं भी अदना साक़िया तेरे तलब-गारों में हूँचौदहवीं का चाँद तू है मैं तिरे तारों में हूँ
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
न है बुत-कदा की तलब मुझे न हरम के दर की तलाश हैजहाँ लुट गया है सुकून-ए-दिल उसी रहगुज़र की तलाश है
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
तालिब ! जुहिदह न तकवा ताइत, मौज मंगा मू मस्ती।दिनी आहि उस्ताद अजल जे, हथि तलब जी तख्ती।
सचल सरमस्त
कलाम
किस की तलब कहाँ की तलब कैसी जुस्तुजूमुद्दत से ख़ुद से मिलने को मैं बे-क़रार हूँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
ना ठिकाना है हमारा ना कोई जा-ए-क़रारउम्र-भर राह-ए-तलब में तेरी बर्बाद रहे
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
तेरी 'अता की ख़ूबियाँ मेरी तलब में भी नहींबंदगी ख़ुद पुकार उठी बंदा-नवाज़ है यही