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कलाम
शेर-ए-ख़ुदा का हूँ गदा काफ़ी है मुझ को बस यही'काविश' मैं ताज-ओ-तख़्त को माल-ओ-गुहर को क्या करूँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
न सवाल है तख़्त-ओ-ताज का न क़सम से ज़र का ख़याल हैमिरे चारा-गर मिरे मेहरबाँ तिरे एक का सवाल है
फ़राज़ वारसी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना