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कलाम
'अजब अंदाज़ तुझ को नर्गिस-ए-मस्ताना आता हैकि हर होशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
बाक़ीर शाहजहांपुरी
कलाम
यहाँ भी कुछ निगाहें तिश्ना-ए-दीदार हैं साक़ीइधर भी एक दौर-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना हो जाए
माहिरुल क़ादरी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है