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कलाम
ये सबक़ तूलानी ऐसा है कि आख़िर हो न होबे-निहायत को निहायत कैसे या-रब्बाह हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
हबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई कानिहायत ग़म है इस क़तरे को दरिया की जुदाई का