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रह्म खा हाल पे ‘ज़ाहिर’ के बराए यसरिबजान-ओ-दिल तुझ पे वो क़ुर्बान किए बैठे हैं
मु'आफ़ कर दे ऐ ख़ुदा मुझ को तेरा आसराफ़रियाद करूँ तेरे दर पे मौला
साहिल पे लाई और सफ़ीने डुबो दिएयूँ ज़िंदगी ने हमको हँसाया कि रो दिए
फ़ातिहा गोर पे पढ़ने को न आए कोईसो रही है मिरी हसरत न जगाए कोई
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहींया'नी हमारे जेब में इक तार भी नहीं
हस्ती पे निखार आ जाता है जिस वक़्त वो सामने होते हैंहर शय पे निखार आ जाता है जिस वक़्त वो सामने होते हैं
दिल पे क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैंअपने घर में वो आए बैठे हैं
तेरे दरवाज़े पे चिलमन नहीं देखी जातीजान-ए-जाँ हम से ये उलझन नहीं देखी जाती
जो रुख़्सार-ए-शह पे नज़र जाएगीगुलों से तबी'अत उतर जाएगी
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए हैमैं उसे देखूँ भला कब मुझ से देखा जाए है
ज़ुल्म होता है जफाओं पे जफ़ा होती हैयूँ अदा रस्म मोहब्बत की अदा होती है
जब बोला अनल-हक़ वो दाना उस भेद को वा'इज़ कब जानासूली पे वहीं चढ़ कर बोला मिलता है पिया के दर पे ख़ुदा
जब नज़र पड़ने लगी जोबन पे इतराने लगेदेखने के जब हुए क़ाबिल तो शरमाने लगे
दिल पे तअ'ल्लुक़ात का रंग चढ़े कुछ इस तरहआप ही ख़ुद से ग़ैर हो आप ही आश्ना बने
न सता दर पे पड़ा रहने दे क्या लेते हैंआह शह-ए-हुस्न फ़क़ीरों की दु'आ लेते हैं
आँखों से इधर अश्क टपकते हैं हमारेगर्दूं पे उधर टूटते जाते हैं सितारे
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
तुझ पे क़ुर्बान हो गया है दिलअब मिरी जान हो गया है दिल
वा'दा-ए-वस्ल पे कहते हैं वो हँस कर दूल्हाआईना देख के ज़ुल्फ़ों को बना लूँ तो कहूँ
'इश्क़ तख़्लीक़ हुआ हुस्न पे मिट जाने कोशम' अफ़्सुर्दा न हो फूँक के परवाने को
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