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कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
अगर का'बः का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाएतो फिर सज्दः मिरी हर लग़्ज़िश-ए-मस्ताना हो जाए
बेदम शाह वारसी
कलाम
ये फ़ज़ा ये चाँदनी रातें ये दौर-ए-जाम-ओ-मयमस्तियों में ग़र्क़ हो जाने का मौसम आगया
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
अगर मंज़ूर है पीना मय-ए-वहदत के साग़र कालिया कर नाम हर दम हज़रत साक़ी-ए-कौसर का
ख़्वाजा ईलाही बख़्श मारूफ़
कलाम
तेरे मय-ख़ाना में ऐ साक़ी ये कैसा जोश हैदेखिए जिस रिंद को भी बे-ख़ुद-ओ-मदहोश है