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कलाम
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहींऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
हाल में अपने मस्त हूँ ग़ैर का होश ही नहींरहता हूँ मैं जहाँ में यूँ जैसे यहाँ कोई नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
गंदुम को खा के 'रिज़वाँ' हैं ऐसे हाल में हमपहले 'उरूज पर थे अब हैं ज़वाल में हम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है