परिणाम "मीर-ए-हिजाज़"
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गलीम-ए-बख़्त-ए-सियह-ए-साया-दार रखते हैंयही बिसात में हम ख़ाकसार रखते हैं
अहल-ए-फ़ना को नाम से हस्ती के नंग हैलौह-ए-मज़ार भी मिरी छाती पे संग है
माने' नहीं हम वो बुत-ए-ख़ुद-काम कहीं होपर उस दिल-ए-बेताब को आराम कहीं हो
फ़क़ीराना आए सदा कर चलेमियाँ ख़ुश रहो हम दुआ' कर चले
अब तो सबा चमन से आती नहीं इधर कुछहम तक नहीं पहुँचती गुल की ख़बर 'इत्र कुछ
तुंद मय और ऐसे कम-सिन के लिएसाक़िया हल्की सी ला इन के लिए
था मुस्त’आर-ए-हुस्न से उस के जो नूर थाख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़ुहूर था
मर रहते जो गुल बिन तो सारा ये ख़लल जातानिकला ही न जी वर्ना काँटा सा निकल जाता
मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँजो कुछ कि हूँ सो हूँ ग़रज़ आफ़त-रसीदा हूँ
सज्दा मेरा वहाँ अदा न हुआजिस जगह तेरा नक़्श-ए-पा न हुआ
गर देखिए तो मज़हर-ए-आसार-ए-बक़ा हूँऔर समझिए जूँ अ'क्स मुझे मह्व-ए-फ़ना हूँ
पहलू में दिल तपाँ नहीं हैहर चंद कि याँ है याँ नहीं है
नज़र वो होके तिरा हुस्न रू-ब-रू आएजिधर भी देखो नज़र सिर्फ़ तू ही तू आए
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगातो इक दिन मिरा जी ही जाता रहेगा
हम ने किस रात नाला सर न कियापर उसे आह कुछ असर न किया
जान पे खेला हूँ मैं मेरा जिगर देखनाजी न रहे या रहे मुझ को इधर देखना
यारो मिरा शिकवा ही भला कीजिए उस सेमज़कूर किसी तरह तो जाके कीजिए उस से
वहदत ने हर तरफ़ तिरे जल्वे दिखा दिएपर्दे तअ'य्युनात के जो थे उठा दिए
दिल किस की चश्म-ए-मस्त का सरशार हो गयाकिस की नज़र लगी जो ये बीमार हो गया
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