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कलाम
फ़ना बन कर मलाल ख़ातिर महज़ून-ए-'अयाँ क्यूँ होकोई ये भी दिगर पूछे कि सरगर्म-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
अज्ञात
कलाम
मैं मसर्रत में ख़ुशी में हूँ न रंज-ओ-ग़म में हूँरू-ए-जानाँ सामने है मैं अजब आ'लम में हूँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
ये असीर-ए-रंज-ओ-राहत में असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानानाभला क्या समझ सकेगा मुझे ना समझ ज़माना
अब्दुल हादी काविश
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना