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कलाम
रक़ीब-ए-रू-सियह से भी तो बिगड़ो ज़ुल्फ़ की सूरतअगर तुम को मिरी जाँ नाज़-ए-मा'शूक़ाना आता है
अज्ञात
कलाम
नुमायाँ कर दिया उस ने बहार-ए-रू-ए-ख़ंदाँ कोकि दी नग़्मे को मस्ती रंग कुछ सेहन-ए-गुलिस्ताँ को
असग़र गोंडवी
कलाम
ख़याल आया जो उस मह-रू को गुल-गश्त-ए-ख़ियाबाँ कानज़र कुछ और ही आने लगा 'आलम-ए-गुलिस्ताँ का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है