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कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
न तू माह बन के फ़लक पे रह न तू फूल बन के चमन में आये तमाम जल्वे समेट कर किसी दिल-गुदाज़-ए-फबन में आ
एहसान दानिश
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है