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कलाम
जन्नत ही न रास आई दुनिया ही न रास आईअब आगे मियाँ 'रिज़वाँ किस जा पे ठिकाना है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
‘फ़ानी’ हम तो जीते जी वो मय्यत हैं बे गोर-ओ-कफ़नग़ुर्बत जिस को रास ना आई और वतन भी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
कलाम
मुझे रास आएँ ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ'तेंउन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं