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कलाम
न हो जाए कहीं तक़दीम या ताख़ीर लफ़्ज़ों मेंसुना दे ऐ मिरे क़ासिद ज़रा मेरा बयाँ मुझ को
शाकिर कानपुरी
कलाम
दो लफ़्ज़ों ही में कह दिया सब माजरा-ए-दिलख़ामोश हो गया है कोई कह के हा-ए-दिल