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कलाम
मुल्ला छदि किताबनि पचर, मै जी पीउ प्याली।पल मे मुल्ला साहिब ! थी तू मस्तु व मस्तु मवाली।
सचल सरमस्त
कलाम
क्या कहूँ तारीकी-ए-ज़िन्दान-ए-ग़म अंधेर हैपुम्बा नूर-व-सुब्ह से कम जिस के रौज़न में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
विलायत में तो हज़रत के नहीं है मुझ को शक हरगिज़व-लेकिन नाज़ अज़ बस था जनाब-ए-शैख़-ए-सनआँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
फिरे ज़माना में चार जानिब निगार-ए-यकता तुम ही को देखाहसीन देखे जमील देखे व-लेक तुम सा तुम ही को देखा
अज्ञात
कलाम
हस्ती की इस सराए में रात की रात जो बस लियेसुब्ह-ए-अदम हुई न हो व पाँव उठाओ जो हो सो हो