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कलाम
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गईदिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
फ़स्ल-ए-गुल में रंग मस्ती का जमाना चाहिएउठ के मस्जिद से सू-ए-मय-ख़ाना जाना चाहिए
इम्तियाज़ हुसैन वाक़िफ़
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है